MA Semester-1 Sociology paper-I - CLASSICAL SOCIOLOGICAL TRADITION - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2681
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न - पश्चिमी समाज में समाजशास्त्र के विकास का वर्णन कीजिये।

उत्तर -

पश्चिमी समाजों में समाजशास्त्र
(Sociology in the West)

I. समाजशास्त्र के विकास की प्रथम अवस्था (First stage of Development of Sociology) - साधारणतः यह माना जाता है कि समाजशास्त्र के विकास की प्रारम्भिक अवस्था यूरोप से शुरू हुई। परन्तु कुछ भारतीय विचारकों की मान्यता है कि समाज जीवन से सम्बन्धित अनेक महत्तवपूर्ण बातें वेदों, उपनिषदों, पुराणों, महाकाव्यों एवं स्मृतियों आदि में मिलती हैं। यहाँ प्रचलित वर्णाश्रम व्यवस्था इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि भारतीय चिन्तकों ने समाज और जीवन की एक व्यापक व्यवस्था का विकास पाश्चात्य विद्वानों के इस दिशा में चिन्तन के बहुत पहले ही कर लिया था। लेकिन यहाँ हमें इतना अवश्य ध्यान में रखना होगा कि भारतीय विद्वानों के समाज सम्बन्धी विचार धर्म राजनीति एवं अर्थ से काफी प्रभावित थे।

पश्चिमी समाजों में समाज सम्बन्धी अध्ययनों का प्रारम्भ यूनानी विचारकों से हुआ। प्लेटो (Plato) तथा अरस्तु (Aristotle) की रचनाएँ इस दिशा में प्रमुख प्रयास थे। प्लेटो ने अपनी पुस्तक 'रिपब्लिक' (Republic) (427-347 B. C.] तथा अरस्तु ने 'इथिक्स एण्ड पॉलिटिक्स' (Ethics and Politics) [384-322 B. C.] में समाज जीवन से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं एवं घटनाओं का व्यवस्थित विवरण प्रस्तुत किया। आपने अपनी रचनाओं में पारिवारिक जीवन, रीति-रिवाजों, परम्पराओं, स्त्रियों की स्थिति, सामाजिक संहिताओं आदि का विस्तृत वर्णन किया है। इन विद्वानों के विचारों में स्पष्टता का अवश्य अभाव था और ये एक ओर समाज, समुदाय तथा राज्य में और दूसरी ओर दर्शन एवं विज्ञान में स्पष्ट भेद नहीं कर पाये। उस समय समाज में धर्म और जादू-टोने का विशेष .बोलबाला था। इसी कारण उस समय सामाजिक घटनाओं का अध्ययन प्रमुखतः वैज्ञानिक दृष्टि से नहीं किया जा सका। प्लेटो तथा अरस्तू के पश्चात् समाज-जीवन के अध्ययन एवं समाजशास्त्र के विकास में लुक्रेशियस (96-55 B. C.), सिसरों (106-43 B. C.), मारकस आरेलियस (121-180 A. D.), सेन्ट आगस्टाइन (354-430 A. D.) आदि का उल्लेखनीय योगदान है। भारतीय विचारों के इतिहास में मनु एवं कौटिल्य (चाणक्य) का योगदान काफी उल्लेखनीय है। मनु ने अपनी रचना 'मनुस्मृति' में भारतीय समाज व्यवस्था का और कौटिलय ने 'अर्थशास्त्र' में सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का विवेचन प्रस्तुत किया है।

II. समाजशास्त्र के विकास की द्वितीय अवस्था (Second Stage of Development of Sociology) - छठी शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी तक का काल समाजशास्त्र के विकास की द्वितीय अवस्था मानी जाती है। इस काल में भी काफी लम्बे समय तक सामाजिक समस्याओं को समझने के लिए धर्म और दर्शन का सहारा लिया जाता रहा। लेकिन तेरहवीं शताब्दी में सामाजिक समस्याओं को तार्किक ढंग से समझाने का प्रयत्न किया गया। धीरे-धीरे सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में तर्क का महत्व बढ़ता गया। थामस एक्यूनस (1227-1274) तथा दान्ते (1265- 1321) की रचनाओं से यह बात भली-भाँति स्पष्ट है। इन विद्वानों ने मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी माना और समाज को व्यवस्थित ढंग से संचालित करने के लिए सरकार की आवश्यकता पर जोर दिया। एक्यूनस ने सामाजिक सहयोग, न्याय, ईश्वर, श्रद्धा, एकता आदि का अध्ययन किया। इसी काल में समाज को परिवर्तनशील माना गया और साथ ही बतलाया गया कि इस परिवर्तन के पीछे कुछ निश्चित नियम, सामाजिक क्रियाएँ एवं शक्तियाँ कार्य करती हैं। इस समय सामाजिक घटनाओं एवं तथ्यों को समझने के लिए उस विधि के प्रयोग पर जोर दिया गया जिसका प्रयोग प्राकृतिक घटनाओं एवं तथ्यों को समझने हेतु किया जाता था। परिणामस्वरूप इस काल के विचारकों के चिन्तन में वैज्ञानिकता का प्रभाव दिखायी देने लगा। अब समाज के अध्ययन में कार्य-कारण सम्बन्धों पर जोर दिया जाने लगा।

III. समाजशास्त्र के विकास की तृतीय अवस्था (Third Stage of Development of Sociology) - इस अवस्था का प्रारम्भ पन्द्रहवीं शताब्दी से माना गया है। इस काल में सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञानिक विधि का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। इस समय समाज-जीवन के विभिन्न पक्षों-सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि का स्वतन्त्र रूप से अध्ययन किया जाने लगा। परिणामस्वरूप विशिष्ट सामाजिक विज्ञानों जैसे अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, राजनीतिशास्त्र, इतिहास आदि का विकास हुआ। इस काल के विचारकों के बौद्धिक चिन्तन के फलस्वरूप समाजशास्त्र के विकास के लिए आवश्यक पृष्ठभूमि तैयार हो सकी। हाब्स, लॉक तथा रूसो के द्वारा 'सामाजिक समझौते का 'सेद्धान्त' (Social Contract Theory) प्रतिपादित किया गया। सर थामस मूर ने अपनी पुस्तक 'यूटोपिया' (Utopia) में दिन-प्रतिदिन की सामाजिक समस्याओं को समझाने का प्रयत्न किया। इसी पुस्तक में आपने इंग्लैण्ड की सामाजिक व्यवस्था एवं तत्कालीन सामाजिक समस्याओं का विवरण दिया है। माण्टेस्कयू ने अपनी पुस्तक 'दी स्पिरिट ऑफ लॉज' (The Spirit of Laws) में मानव समाज पर भौगोलिक पर्यावरण के प्रभाव को दर्शाने का प्रयत्न किया। विको नामक विद्वान ने 'दी न्यू साइन्स' (The New Science) में सामाजिक शक्तियों की 'उद्देश्यपूर्ण व्याख्या प्रस्तुत की। माल्थस ने जनसंख्या-सिद्धान्त और जनाधिक्य (Overpopulation) से सम्बन्धित समस्याओं पर प्रकाश डाला। एडम स्मिथ ने आर्थिक मनुष्यों का विचार किया। कन्डोस्सेट ने सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। जेम्स हेरिंगटन ने इतिहास की आर्थिक व्यवस्था से सम्बन्धित सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इन सभी और अनेक अन्य विद्वानों का यद्यपि समाजशास्त्र के विकास में काफी योगदान है परन्तु इनके अध्ययनों में एकरूपता और विशेषीकरण का अभाव है। कई विद्वान सामाजिक घटनाओं को आर्थिक घटनाओं से पृथक् करके उनका अध्ययन नहीं कर पाये।

IV. समाजशास्त्र के विकास की चतुर्थ अवस्था (Fourth Stage of Development, of Sociology) - समाजशास्त्र के विकास की इस चतुर्थ अवस्था का प्रारम्भ ऑगस्त कॉम्ट (1798- 1857) के समय से माना जाता है। यही समाजशास्त्र के वैज्ञानिक विकास की वास्तविक अवस्था है। फ्रांसीसी विद्वान ऑगस्त कॉम्ट के गुरु सेन्ट साइमन भौतिक विज्ञानों के समान समाज को एक ऐसा विज्ञान बनाना चाहते थे जिसमें सामाजिक घटनाओं का व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अध्ययन तथा विश्लेषण किया जा सके और इसके परिणामस्वरूप सामाजिक नियमों का पता लगाया जा सके। ऑगस्त कॉम्ट ने अपने गुरु के इन्हीं विचारों को मूर्त रूप देने का प्रयत्न किया। आपने समाज से सम्बन्धित अध्ययन को 'सामाजिक, भौतिकी' (Social Physics) के नाम से पुकारा। सन् 1838 में आपने इस नाम को बदलकर इसे 'समाजशास्त्र' (Sociology) नाम दिया। यही कारण है कि आपको समाजशास्त्र का जन्मदाता या पिता (Father of Sociology) कहा जाता है। समाजशास्त्र रूपी विशाल भवन का आधार ऑगस्त कॉम्ट का चिन्तन ही है। आपने ही सर्वप्रथम सामाजिक दर्शन और समाजशास्त्र में अन्तर स्पष्ट किया। आपने ही समाजशास्त्रीय प्रणाली का विकास किया। आपने स्पष्टतः बताया है कि प्राकृतिक घटनाओं के समान सामाजिक घटनाओं का भी वैषयिक तरीके से (Objectively) प्रत्यक्ष विधि (Direct Method) की सहायता से अध्ययन किया जा सकता है। सन् 1843 में जॉन स्टुअर्ट मिल ने इंग्लैण्ड को समाजशास्त्र शब्द से परिचित कराया। बाद में प्रसिद्ध ब्रिटिश समाजशास्त्री हरबर्ट स्पेन्सर ने समाजशास्त्र के विकास में सक्रिय योग दिया। आपने ही अपनी रचना 'सिन्थेटिक फिलासफी' (Synthetic Philosophy) के एक भाग 'प्रिंसीपिल्स ऑफ सोशियालॉजी' (Principles of Sociology) में काम्ट के विचारों को मूर्त रूप देने का प्रयत्न किया। आपने अपने प्रसिद्ध 'सावयवी सिद्धान्त' (Theory of Organicism) में समाज की तुलना मानव शरीर से की है। सर्वप्रथम अमरीका के येल विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के अध्ययन-अध्यापन का कार्य प्रारम्भ हुआ।

समाजशास्त्र को अन्य सामाजिक विज्ञानों से पृथक् एक स्वतन्त्र एवं वैषयिक विज्ञान (Objective Science) बनाने का श्रेय फ्रांसीसी विद्वान इमाइल दुर्खीम (1858-1917) को है। आपने समाजशास्त्र को सामूहिक प्रतिनिधानों (Collective Representation) का विज्ञान माना है। एडवुड ने बताया है कि यद्यपि कॉम्ट ने फ्रांस में समाजशास्त्र की नींव डाली लेकिन इसे वैषयिक विज्ञान बनाने वाली विचारधारा का जनक दुर्खीम को ही माना जा सकता है। आपने ही समाजशास्त्र को अन्य सामाजिक विज्ञानों- मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र और इतिहास से स्वतन्त्र किया। प्रसिद्ध जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेबर (1864-1920) ने समाजशास्त्र को विज्ञान का रूप देने का पूरा-पूरा प्रयत्न किया। आपने अपनी विभिन्न रचनाओं के माध्यम से समाजशास्त्र के विकास में अपूर्व योग दिया। इटली के समाजशास्त्री विलफ्रेड परेटो (1848-1923) का समाजशास्त्र के व्यवस्थित विज्ञान के रूप में विकास में काफी योगदान है।

समाजशास्त्र के विकास में विश्व के विभिन्न देशों के विद्वानों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। विशेषतः 20वीं शताब्दी में फ्रांस, जर्मनी एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में इस विषय का काफी विकास हुआ। इंग्लैण्ड में इसके विकास की गति धीमी रही। अमेरिका में समाजशास्त्र के विकास तथा अध्ययन- अध्यापन पर काफी ध्यान दिया गया। लेकिन वहाँ भी 20वीं शताब्दी में ही इस विषय का विकास हुआ। यह इस बात से स्पष्ट है कि हार्वर्ड जैसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में सन् 1930 तक समाजशास्त्र के अध्ययन-अध्यापन की कोई व्यवस्था नहीं थी।

समाजशास्त्र के विकास में इंग्लैण्ड के हरबर्ट स्पेन्सर, मिल, चार्ल्स, बूथ, हाबहाउस वेस्टरमार्क, मानहीम, गिन्सबर्ग आदि का उल्लेखनीय योगदान है। इंग्लैण्ड में समाजशास्त्र का अध्यापन-कार्य सन् 1907 में प्रारम्भ हुआ। फ्रांस में दुर्खीम, टार्डे, लीप्ले आदि ने समाजशास्त्र के विकास की दृष्टि से सराहनीय कार्य किया। वहाँ सन् 1889 में समाजशास्त्र का अध्ययन-अध्यापन प्रारम्भ हुआ। जर्मनी में 19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों और 20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षो में समाजशास्त्र के विकास में टॉनीज, वान विज, मैक्स वेबर, कार्ल मार्क्स, वीरकान्त, सिमैल आदि विद्वानों का काफी योगदान रहा। अमेरिका में समाजशास्त्र का काफी विकास हुआ। यह गिडिंग्स, समनर, वार्ड, पार्क, बर्गेस, सोरोकिन, जिमरमैन, मैकाइवर, ऑगबर्न, पारसन्स, मर्टन यंग, कॉजर, रॉस आदि ने इस दिशा में विशेष सहयोग दिया। वहाँ सन् 1876 में येल विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम समाजशास्त्र के अध्ययन-अध्यापन का कार्य प्रारम्भ हुआ। सन् 1924 में मिस्र और 1947 में स्वीडन में समाजशास्त्र विभाग स्थापित किये गये।

आज सभी विकसित और विकासशील देशों में समाजशास्त्र का अध्ययन साधारणतः प्रारम्भ हो चुका है। यद्यपि कुछ देश अब भी अपवाद अवश्य हैं। वर्तमान में समाजशास्त्र की उपयोगिता और लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। आज समाजशास्त्र की अनेक शाखाओं का विकास हो चुका है। वर्तमान में समाजशास्त्र में वैज्ञानिक प्रवृत्ति और सांख्यिकी (Statistics) का प्रयोगं दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि विभिन्न अवस्थाओं से गुजरकर समाजशास्त्र वर्तमान अवस्था में पहुँचा है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  4. प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
  5. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
  6. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
  7. प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  11. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
  12. प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
  14. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  15. प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
  16. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
  17. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
  19. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
  20. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
  21. प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
  22. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
  29. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
  30. प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
  31. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  34. प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
  35. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
  36. प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
  37. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  38. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
  39. प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
  40. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
  41. प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
  42. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
  43. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
  44. प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
  45. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
  46. प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
  47. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
  48. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
  49. प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
  50. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
  52. प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
  54. प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
  55. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  58. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  60. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
  61. प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
  62. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  64. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  65. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
  66. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  67. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  68. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  69. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
  70. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
  72. प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  73. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
  75. प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
  76. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
  77. प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
  78. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  79. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  81. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  82. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  83. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  84. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  85. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  86. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  87. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  88. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  92. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  93. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  95. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  96. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  98. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  99. प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
  100. प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
  101. प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
  102. प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
  103. प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  104. प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
  105. प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
  106. प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
  108. प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
  109. प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  111. प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
  113. प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
  114. प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
  115. प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
  116. प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
  117. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
  119. प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
  120. प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
  121. प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
  123. प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
  124. प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
  126. प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  127. प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
  128. प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
  129. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
  130. प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
  131. प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
  133. प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
  134. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  136. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  137. प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
  138. प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  140. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  141. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  142. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  143. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  144. प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
  145. प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  146. प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
  147. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
  148. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
  149. प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
  150. प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
  151. प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
  152. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
  153. प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  154. प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
  155. प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

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